मुंबई
समाजसेवी अन्ना हजारे को घेरने के लिए केंद्र सरकार और कांग्रेस पार्टी जिस सावंत आयोग की रिपोर्ट का इस्तेमाल कर रही हैं, वह रिपोर्ट कांग्रेसनीत देशमुख सरकार के कार्यकाल में पेश हुई थी। इसके बावजूद मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख अथवा उनके बाद आए मुख्यमंत्रियों ने अन्ना पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, यह बड़ा सवाल है।
आयोग की इसी रिपोर्ट के बाद दो मंत्रियों सुरेशदादा जैन एवं नवाब मलिक को इस्तीफा देना पड़ा,
लेकिन हजारे इस्तीफे मात्र से संतुष्ट नहीं थे। वह इन पर कानूनी कार्रवाई भी चाहते थे। इसलिए आयोग की रिपोर्ट पर राय देने एवं कार्रवाई सुझाने के लिए तत्कालीन सरकार ने एक तीन सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया। तीन सदस्यीय सुकथनकर समिति को कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
कुछ ही महीनों में आ गई इस समिति की रिपोर्ट में सावंत कमीशन द्वारा सभी मंत्रियों सहित अन्ना हजारे पर लगाए गए आरोपों को कार्रवाई करने लायक गंभीर आरोप न मानते हुए मात्र प्रशासनिक ढील करार देकर सभी को क्लीन चिट दे दी थी।
अन्ना तब इसका विरोधकरते हुए पुन: अनशन पर बैठ गए थे। उनका तर्क था कि सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट पर किसी और समिति का विचार लेने की आवश्यकता ही क्या थी? अन्ना ने सावंत कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही दोषी बताए गए मंत्रियों के साथ-साथ स्वयं पर भी कार्रवाई करने की चुनौती तत्कालीन सरकार को दी थी, लेकिन सरकार ने ऐसा करने के बजाय इस मामले में राय लेने के लिए तत्कालीन महाधिवक्ता रवि कदम की अध्यक्षता में एक और समिति गठित कर दी। इस त्रिसदस्यीय समिति की न तो अभी तक रिपोर्ट आ सकी है, न ही सावतं आयोग द्वारा दोषी माने गए तत्कालीन मंत्रियों एवं अन्ना हजारे पर कोई कानूनी कार्रवाई अब तक हो सकी है।
सावंत आयोग की रिपोर्ट में अन्ना पर आरोप
-हजारे के हिंद स्वराज ट्रस्ट ने उनके जन्मदिन पर 2.20 लाख रुपए खर्च किए। ट्रस्ट को यह राशि अभय फिरौदिया नामक एक व्यवसायी ने दान की थी। यह राशि जन्मदिन पर खर्च करने का अधिकार ट्रस्ट को नहीं था।
-हिंद स्वराज ट्रस्ट ने चैरिटी कमिश्नर की पूर्वानुमति के बिना 89 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया। बाद में इसी भूखंड में से 11 एकड़ भूमि जिला परिषद को उपहार स्वरूप दे दी।
-अन्ना ने ट्रस्ट के लिए कुछ लोगों की गैर कानूनी नियुक्तियांकी। नियुक्त लोगों द्वारा ट्रस्ट के नाम पर इकट्ठा धन का हिसाब नहीं दिया गया।
-अन्ना के ट्रस्ट ने 1998 से 2002 के बीच की लेखापरीक्षित रिपोर्ट चैरिटी कमिश्नर को नहीं सौंपी। ट्रस्ट में इकट्ठा धन का सही हिसाब नहीं रखा गया।