विपक्ष की सहमति से सरकार ने लिया यू-टर्न
नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के तल्ख तेवर और नागरिक समिति के सदस्य अरविंद केजरीवाल की बेबाकी के बाद सरकार और अन्ना के बीच गुरुवार को बातचीत पटरी से उतर गई थी। फिर आखिर वह कौन सी बात हो गई जिसके बाद सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह को कुछ ही घंटों के बाद संसद में यह ऐलान करने के लिए बाध्य होना पड़ा कि अन्ना की शर्तों को वह मानने के लिए तैयार हैं और वह जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर संसद के भीतर भी बहस के लिए तैयार है। कुछ न कुछ तो जरूर बदला पर नहीं बदली तो अन्ना की शर्तें और तेवर।
हालांकि मीडिया ने प्रधानमंत्री के इस पहल को जरूर ऐतिहासिक करार दिया पर दैट्स हिंदी ने सबसे पहले आशंका जताई थी कि सरकार केवल अन्ना टीम को गोल गोल घुमा रही है। सरकार पहले भी इस मुद्दे पर गंभीर नहीं थी और आज भी नहीं है उसी की परिणति है कि शुक्रवार की सुबह सबेरे ही संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल का यह बयान की आज संसद में जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर बहस नहीं होगी क्योंकि यह आज की कार्यसूची में शामिल ही नहीं है।
अब आप सोचिए कि 24 घंटे पहले प्रधानमंत्री इस बात की घोषणा करते हैं कि संसद में चर्चा कराई जाएगी फिर उसी के संसदीय कार्य मंत्री का यह बयान कि संसद की कार्य सूची में आज यह लिस्ट नहीं है सरकार इस मुद्दे पर कितनी गंभीर है इसे सहजता से समझा जा सकता है। हालांकि बाद में कांग्रेस के ही जगदंबिका पाल, संजय निरुपम और एक अन्य सांसद द्वारा नियम 193 के तहत चर्चा के लिए नोटिस दिया जाता है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार विपक्ष की सहमति के बाद ही अन्ना के लोकपाल के मुद्दे पर संसद में बहस के लिए तैयार हुई। बताया जा रहा है कि जब अन्ना के अनशन के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक समाप्त हुई तो उसके बाद सरकार के कुछ मंत्री जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल थे, भाजपा के कुछ नेताओं मसलन सुषमा स्वराज, लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और शरद यादव के साथ एक अलग कमरे में एक घंटे तक बातचीत की।
बातचीत का लब्बोलुआब यह रहा कि दोनों ओर से इतनी तल्खी के बाद भी सरकार गुरुवार को संसद के भीतर और बाहर झुकती नजर आई। हालांकि वास्तव में यह सिर्फ लोगों को भ्रम ही था कि सरकार झुक रही है। क्योंकि यदि सरकार को अन्ना की थोड़ी भी चिंता होती तो उन्हें तिलतिलकर घुटते हुए न देखती और अन्ना की सभी मांगों को एक ही झटके में स्वीकार कर लेती।
वहीं सर्वदलीय बैठक के बाद भाजपा भी अपने रुख स्पष्ट नहीं कर रही थी क्योंकि कहीं न कहीं वह सरकार के मंशा से अपने को इतर नहीं कर पा रही थी पर गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान और टीम अन्ना के मुलाकात के बाद पार्टी का रुख स्पष्ट हो पाया जिसके बाद अपने को अकेला पाकर सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया और अपने एक मंत्री विलासराव देशमुख को अन्ना के पीछे समझौते के लिए लगाया। हालांकि वे प्रयास कर रहे हैं पर इतना तो तय है कि अन्ना भी अपनी शर्तों में डील देने को तैयार नहीं है। अब देखना है कि आखिर यह अनशन किस मंजिल पर पहुंचता है क्योंकि आज 11वें दिन अन्ना कुछ अनमने से लग रहे हैं।
हालांकि मीडिया ने प्रधानमंत्री के इस पहल को जरूर ऐतिहासिक करार दिया पर दैट्स हिंदी ने सबसे पहले आशंका जताई थी कि सरकार केवल अन्ना टीम को गोल गोल घुमा रही है। सरकार पहले भी इस मुद्दे पर गंभीर नहीं थी और आज भी नहीं है उसी की परिणति है कि शुक्रवार की सुबह सबेरे ही संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल का यह बयान की आज संसद में जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर बहस नहीं होगी क्योंकि यह आज की कार्यसूची में शामिल ही नहीं है।
अब आप सोचिए कि 24 घंटे पहले प्रधानमंत्री इस बात की घोषणा करते हैं कि संसद में चर्चा कराई जाएगी फिर उसी के संसदीय कार्य मंत्री का यह बयान कि संसद की कार्य सूची में आज यह लिस्ट नहीं है सरकार इस मुद्दे पर कितनी गंभीर है इसे सहजता से समझा जा सकता है। हालांकि बाद में कांग्रेस के ही जगदंबिका पाल, संजय निरुपम और एक अन्य सांसद द्वारा नियम 193 के तहत चर्चा के लिए नोटिस दिया जाता है।
सूत्रों ने बताया कि सरकार विपक्ष की सहमति के बाद ही अन्ना के लोकपाल के मुद्दे पर संसद में बहस के लिए तैयार हुई। बताया जा रहा है कि जब अन्ना के अनशन के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक समाप्त हुई तो उसके बाद सरकार के कुछ मंत्री जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल थे, भाजपा के कुछ नेताओं मसलन सुषमा स्वराज, लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली और शरद यादव के साथ एक अलग कमरे में एक घंटे तक बातचीत की।
बातचीत का लब्बोलुआब यह रहा कि दोनों ओर से इतनी तल्खी के बाद भी सरकार गुरुवार को संसद के भीतर और बाहर झुकती नजर आई। हालांकि वास्तव में यह सिर्फ लोगों को भ्रम ही था कि सरकार झुक रही है। क्योंकि यदि सरकार को अन्ना की थोड़ी भी चिंता होती तो उन्हें तिलतिलकर घुटते हुए न देखती और अन्ना की सभी मांगों को एक ही झटके में स्वीकार कर लेती।
वहीं सर्वदलीय बैठक के बाद भाजपा भी अपने रुख स्पष्ट नहीं कर रही थी क्योंकि कहीं न कहीं वह सरकार के मंशा से अपने को इतर नहीं कर पा रही थी पर गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान और टीम अन्ना के मुलाकात के बाद पार्टी का रुख स्पष्ट हो पाया जिसके बाद अपने को अकेला पाकर सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया और अपने एक मंत्री विलासराव देशमुख को अन्ना के पीछे समझौते के लिए लगाया। हालांकि वे प्रयास कर रहे हैं पर इतना तो तय है कि अन्ना भी अपनी शर्तों में डील देने को तैयार नहीं है। अब देखना है कि आखिर यह अनशन किस मंजिल पर पहुंचता है क्योंकि आज 11वें दिन अन्ना कुछ अनमने से लग रहे हैं।