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Sunday, 21 August 2011

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अन्ना रामलीला मैदान में ‘भ्रष्टाचार के रावण का दहन’ करेंगे

नई दिल्ली का ऐतिहासिक रामलीला मैदान यूं तो कई बार महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं का गवाह बन चुका है, लेकिन इस बार यह देश में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को लेकर विश्वभर में चर्चा का केंद्र बन गया है। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे इसी मैदान से व्यवस्था परिवर्तन का शंखनाद कर चुके हैं।

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर रावण दहन प्रतिवर्ष इसी रामलीला मैदान में किया जाता है और यह काम पिछले कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करती आई हैं, लेकिन इस बार भ्रष्टाचार रूपी रावण का दहन करने की बारी अन्ना हजारे की है।
रामलीला मैदान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर यदि गौर किया जाए तो कहा जाता है कि अंग्रेजों ने वर्ष 1883 में इसे ब्रिटिश सैनिकों के शिविरों के लिए तैयार करवाया था।
अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ में फैले रामलीला मैदान में एक लाख लोग खड़े हो सकते हैं और पुलिस की मानें तो इसकी क्षमता 25 से 30 हजार लोगों की ही है। समय के साथ-साथ पुरानी दिल्ली के कई संगठनों ने इस मैदान में रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया और इसी के चलते इसकी पहचान रामलीला मैदान के रूप में हो गई।
देश की आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, सरदार वल्लभभाई पटेल और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने भी विरोध प्रदर्शन के लिए इसी मैदान को अपनी पंसद बनाया।
रामलीला मैदान में दिसम्बर 1952 में जम्मू एवं कश्मीर के मुद्दे को लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सत्याग्रह किया था, जिससे सरकार पूरी तरह से हिल गई थी। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी 1956-57 में इसी मैदान में अपनी जनसभाएं की।
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने 28 जनवरी, 1961 में इसी मैदान में एक बड़ी जनसभा को सम्बोधित किया था।
चीन के साथ 1962 के युद्ध में मिली हार के बाद 26 जनवरी, 1963 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में सुर साम्राज्ञी लता मंगेश्कर ने भी इसी मैदान में एक ऐतिहासिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। उन्होंने दिल को छू लेने वाले कवि प्रदीप द्वारा लिखित देशभक्ति गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी' को अपनी आवाज दी थी।
वर्ष 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई के दौरान इसी मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था।
वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में जीत का जश्न मनाने के लिए इसी मैदान पर ऐतिहासिक जनसभा को सम्बोधित किया था।
वर्ष 1975 में जयप्रकाश नारायण ने इसी मैदान से इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली सराकर को उखाड़ फेंकने का आह्वन किया था। महान कवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तिया, 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' को लोगों ने एक नारे के तौर पर बुलंद किया था। इस विशाल रैली से डरी सहमी इंदिरा गांधी की सरकार ने 25-26 जून, वर्ष 1975 की रात को आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
हाल के दिनों की बात करें तो यह वही रामलीला मैदान है, जहां योग गुरु बाबा रामदेव ने कालेधन के मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। पांच जून 2011 को रामदेव के समर्थकों पर पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाईं थीं। अब अन्ना का ऐतिहासिक आंदोलन इसी मैदान में जारी है।

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