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Thursday, 11 August 2011

जेपी पार्क में क्‍या 'जेपी' बन पायेंगे अन्‍ना हजारे ?

 
by Ankur Sharma

बेंगलुरू। बुधवार देर शाम अन्ना हजारे के अनशन की जगह पर दिल्ली पुलिस ने मुहर लगायी। अभी तक कहा जा रहा था कि अन्ना हजारे जंतर-मंतर, रामलीला मैदान या शहीद पार्क अपने अनशन के लिए मांग रहे थे लेकिन अंत में जगह उन्हें दी गयी जेपी पार्क में। जेपी पार्क यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण पार्क।

कहते हैं ना इतिहास अपने आप को दोहराता है और शायद इस बार वक्त फिर से करवट ले रहा है और अतित के उन पन्नों को पलटने की कोशिश कर रहा है जिसमें परिवर्तन की नयी इबादत लिखी थी। आपने सही समझा हम बात कर रहे हैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण की। जो भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता तो थे ही लेकिन अपनी समाज सेवा से इन्होंने सत्तासीन इंदिरा सरकार को भी हिला कर रख दिया था। इसलिए इन्हें लोकनायक भी कहा जाता है।

पंडित नेहरू के साथ देश की आजादी में अपना अहम योगदान देने वाले जेपी आजादी और नेहरू के बाद शासन चला रही इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के धुर विरोधी थे। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा के बाद वो खुले तौर पर किसानों और छात्रों के साथ मिलकर इंदिरा गांधी की तानाशाही फरमानों का विरोध करने लगे। जिसका नतीजा ये हुआ कि 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।

लोकनायक जेपी ने देश की आवाम से कहा था कि साथियों देश से भ्रष्टाचार मिटाना है, बेरोजगारी दूर करनी है, शिक्षा में क्रान्ति लाना है.. बस आप मेरा साथ दीजिये क्योंकि देश को खुशहाल बनाना है। जो कि आज की व्यवस्था के चलते पूरी नहीं हो सकतीं और ये तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति यानी 'सम्पूर्ण क्रान्ति' जरूरी है।

आज ये ही सब अन्ना हजारे भी कह रहे हैं। वो भी देश को भ्रष्ट्राचार से मुक्त करना चाहते हैं। इसके लिए वो भी जनता का साथ मांग रहे हैं। ना तो उनके पास हथियारों से लैस सैनिक हैं और ना ही कोई विशेष सुरक्षा। वो भी निहत्थे .. देश से भ्रष्ट्राचार के दीमक को दूर करना चाहते हैं। 74 साल के बुजुर्ग में आज भी वो हिम्मत है जो सरकार को खुली तौर पर चुनौती दे रही है। आज भी अन्ना के साथ देश की वो आवाम हैं जो दिमाग की धनी और वक्त की मारी हुई है। जिसके सपने आज के भ्रष्ट्रनीतियों की चपेट में स्वाहा हो चुके हैं। लोकनायक की तरह अन्ना को भी सत्ता लोभ नहीं है।

एक बार फिर से सत्ता सीन सरकार इंदिरा के वंशजो की ही है। स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही है जो 1975 में थी। लोकनायक की तरह समाजसेवी अन्ना को भी जनता का साथ मिला है। देखना दिलचस्प होगा कि लोकप्रिय अन्ना हजारे देश के दूसरे लोकनायक बन पाते हैं या नहीं और जेपी पार्क से हमें दूसरा जेपी मिलता है नहीं और हमारा देश भ्रष्ट्रतंत्र से मुक्त हो पाता है या नहीं।

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